Tuesday, 7 February 2012

मगर ट्रेन पैसेंजर थी !

टरियों पर दौड़ती उस ट्रेन में मासूम की चीख-पुकार को सुनने वाला कोई नही था ! सफ़र लम्बा नही था,मगर ट्रेन पैसेंजर थी...! लिहाजा उस दरिन्दे ने १३ साल की मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा ! कोरबा से गेवरा की ओर बढ़ रही उस पैसेंजर ट्रेन में चंद लोगो की मौजूदगी भी उस शैतान को नही डरा सकी,तभी तो उसने अपनी नाती की उम्र की एक मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा ! 
                                         बिलासपुर से गेवरा के लिए रविवार ५ फरवरी को निकली पैसेंजर ट्रेन में सरंग्बुन्दिया से रामदयाल केंवट नाम का एक हैवान सवार हुआ ! इंसान की शक्ल में उस भेडिये के साथ १३ साल की एक मासूम बच्ची भी थी जिसे कोई भी देखकर कह सकता था की कोई इंसान अपनी बेटी या फिर नतनी के साथ सफ़र के लिए निकला है ! जैसे - जैसे पैसेंजर ट्रेन गेवरा की ओर बढ़ रही थी उसमे बैठे यात्रियों की संख्या भी कम होती जा रही थी ! कोरबा पहुंचते-पहुँचते वो पैसेंजर ट्रेन खाली हो चुकी थी ! मौके की ताक में सफ़र पर निकले रामदयाल ने १३ साल की पिंकी {बदला हुआ नाम}को छूना-छाना शुरू किया,उस मासूम को जब लगा की वो जिस परिचित व्यक्ति के साथ जा रही है वो उसे बदनीयती से देख रहा है तो उसने शोर मचाना शुरू किया ! खाली  पैसेंजर ट्रेन की बोगी में काफी देर तक वो शैतान पिंकी की कमजोर कलाइयो को मरोड़कर उसे अपनी आगोश में लेने की कोशिश करता रहा ! इस बीच  पैसेंजर ट्रेन की मंजील करीब आती जा रही थी या ये कह ले की पिंकी की मासूमियत पर ऊपर वाले की नजर थी...! काफी देर तक अनाचार की कोशिशे करने वाला रामदयाल जब थक गया तो उसने चलती  पैसेंजर ट्रेन से पिंकी को नीचे फेंक दिया !  पैसेंजर ट्रेन के गुजर जाने के बाद कुछ लोगो की नजर पिंकी पर पड़ी जो ट्रेक के किनारे पड़ी दर्द से चीख रही थी,लोगो की मदद ने पिंकी को जिला अस्पताल पहुंचा दिया जहां उसकी हालत अब ठीक है लेकिन दिलो-दिमाग पर वासना की पड़ी परछाई और मासूमियत को रौंदने की कोशिश करने वाले की घिनोनी सूरत घर कर गई है ! वक्त के साथ भले ही जख्म भर जाएँ मगर दिमाग के किसी ना किसी कोने में शैतान की सूरत घुमती रहेगी !
                              
                                       बाप ने बेचा- पिंकी को  पैसेंजर ट्रेन से फेंक दिए जाने के बाद दुसरे दिन उसका पिता रामाधार उसे देखने अस्पताल पहुंचा,इस दौरान पिंकी की दो बड़ी बहने भी साथ थी जिन्होंने बताया की उनके पिता ने ही पिंकी को रामदयाल के साथ भेजा था ! बताया जा रहा है की पिंकी के बाप को रुपयों की हवस है और उसी भूख को मिटाने की खातिर उसने मासूम को अपने पडोसी दरिन्दे के साथ बहाने से भेज दिया था !
        
                                   आदतन अपराधी है- मासूम के साथ अनाचार करने में नाकाम रामदयाल फिलहाल जी.आर.पी.की गिरफ्त में है  ! उरगा पोलिसे ने रामदयाल को चाम्पा के पास से दो दिन बाद गिरफ्तार कर लिया ! पोलिसे रिकार्ड के मुताबिक रामदयाल आदतन आरोपी है,पोलिसे ने छेड़-छाड़-मारपीट-हथियार रखने और कई गंभीर मामलो में पहले भी रामदयाल को गिरफ्तार किया है ! रामदयाल मासूम की अस्मत लूटने के मामले में जेल की हवा खा रहा है ! पिंकी फिलहाल जिला अस्पताल के बिस्तर पर ठीक होने के इन्तजार उस वक्त को कोस रही है जब वो अपने पिता के कहने पर रामदयाल जैसे भेडिये के साथ  पैसेंजर ट्रेन में सवार हुई थी........!!! 

Friday, 9 December 2011

आशिकी में वर्दी...!

" इश्क नचाये जिसको यार वो फिर नाचे बीच बाज़ार"......"ये जो मोहब्बत है ये उनका है काम महबूब का जो लेते हुए नाम मर जाएँ मिट जाएँ हो जाएँ बदनाम".........शायर की ये लाइने उन आशिको के लिए जीवन में आदर्श का काम करती है जो सच में महबूबा की ख्वाहिश पूरी करने किसी भी राह,किसी भी हद तक चले जाते है ! कोरबा जिले की उरगा चौकी के बरबसपुर गाँव में रहने वाला प्रकाश भी अपनी महबूबा के लिए कुछ करने की ख़वाहिश रखता था.....वो चाहता था हर उस चीज को हासिल करना जो उसकी महबूबा को पसंद थी....प्रकाश किसी भी हद तक जाने को तैयार था,उसे सिर्फ उस महबूबा की चाह थी जिसने प्रकाश को कभी कुछ कर के दिखने की नसीहत दे डाली थी....कुछ बन जाने का जूनून था या फिर जल्दी कुछ कर जाने की तम्मन्ना,प्रकाश ने मोहब्बत हासिल करने के लिए शार्ट-कट ले लिया........जिन्दगी में जल्दी कुछ कर गुजरने की तम्मन्ना में प्रकाश ने जिस रास्ते पर चलना शुरू किया उसकी मंजिल जेल की चाहर दीवारी होगी ये आभास नही रहा होगा.....प्रकाश महबूबा की चाह में उस वर्दी को बाजार से खरीद लाया जिसे क़ानून के रखवाले काफी मशक्कत के बाद शपथ लेकर पहनते है.....जी हाँ प्रकाश ने चाँद रुपयों में बाजार से छत्तीसगढ़ पुलिस की वर्दी खरीद ली.....खाकी को पहनकर प्रकाश ने पहले तो अकेले ही लूट-पाट की ,बाद में गिरोह बन गया जिसमे तीन और युवको ने अपराध से रिश्ता बनाने की शपथ ले ली.....क़ानून की आँखों में धूल झोंककर अपराध की लम्बी सड़क पर प्रकाश और उसके साथी दौड़ लगाते रहे....इधर महबूबा को प्रकाश के पैर पर खड़े होने का इन्तजार था जो इन्तहा होने के बाद किसी दुसरे के नसीब में चला गया.....बेख़ौफ़ दौड़ लगाते प्रकाश को पता ही नही चला की उसकी मंजिल पास चुकी है....कई बरस के इन्तेजार ने महबूबा को किसी और की तकदीर का हिस्सा बना दिया और प्रकाश क़ानून के शिकंजे में फंस गया...जिले की उरगा चौकी में किसी ने प्रकाश और उसके साथियों की करतूतों का खुलासा कर दिया....क़ानून ने अपना जाल बिछाया तो प्रकाश और उसके दो और साथी पकड़ में आ गए....पुलिस ने वो वर्दी भी जब्त कर ली है जिसे पहनकर प्रकाश खुद को असली पुलिस वाला बताता रहा....
                                  क़ानून की गिरफ्त में आया प्रकाश अब कुछ और ही कहानी कहता है,उसने बताया की कभी वर्दी खरीदकर कुछ कर गुजरने का इरादा था मगर महबूबा की शादी के बाद से खुद का घर भी बसा लिया और वर्दी को घर के भीतर एक पेटी में बंद करके रख दिया था.....प्रकाश के मुताबिक़ वो काफी लंबे समय से वर्दी की आड़ में लूट-खसोट का काम नही कर रहा था....खैर अब प्रकाश और उसके साथी कोरबा जेल में है,पुलिस ने न्यालय में पुख्ता साबुत पेश करने का दावा किया है ताकि वर्दी पहनकर फिर कोई बदमिजाज आशिक क़ानून का माखौल ना उड़ा सके !   

Monday, 24 October 2011

मौत का जिम्मेदार कौन...?




   शनिवार की  शाम बिलासपुर में तारबाहर रेल्वे फाटक पर हुए हादसे ने कई परिवार उजाड़ दिए..... इस हादसे ने एक दर्जन से अधिक परिवारों पर ऐसा कहर बरपाया कि अब वे इससे कभी उबर नहीं पाएंगे। उधर हिन्दुस्तान रेल्वे के नक्शे में अपनी खास पहचान रखने वाले बिलासपुर शहर में रेल लाइन पर बिखरे बेगुनाह लोगों के खून से लथपथ तारबाहर फाटक आज चीख-चीख कर यह सवाल उठा रहा है कि आखिर इतने लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है....।
       जोनल रेल्वे मुख्यालय के स्टेशन के नजदीक बने तारबाहर फाटक से रोजाना पता नहीं कितने लोग गुजरते हैं। वजह यही है कि जाल की तरह फैली रेल लाइनों के उस पार सिरगिट्टी और आस-पास के कई गावों मे बड़ी आबादी है। जिनका गुजर-बसर बिलासपुरर से होता है। लिहाजा लोगों का आना-जाना लगा रहता है। जान जोखिम में डालकर भी लोग रेल लाइनों के इस जाल को पार करने बजबूर हैं। ऐसी ही मजबूरी ने शनिवार की शाम कई लोगों की जान ले ली।जिसने भी यह मंजर देखा वह कांप उठा।
        लेकिन अब सवाल यह है कि बेननुगाह लोगों की मौत का गुनाहगार कौन है। व्यवस्था के जिम्मेदार लोग इसके जवाब में दलील दे सकते हैं कि रेल्वे फाटक  बंद होने के बावजूद उसे पार करने की कोशिश करने वाले खुद इसके जिम्मेदार हैं। लेकिन क्या यह बात किसी के गले उतर सकती है। बल्कि व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों से यह पूछा जाना चाहिए कि रेल्वे को लदान और आमदनी के रिकार्ड तोड़ने के लिए हर समय सिर्फ इस बात की फिकर क्यों रहती है कि रेल की पटरियों का अधिकतम इस्तेमाल कैसे किया जाए।इस वजह से ही ट्रेक पर से हर समय गाड़िया गुजरती हैं। इस फेर में रेल्वे ने कभी यह नहीं सोचा कि आम लोग इस फाटक से कैसे गुजरते होंगे।
       बरसों पहले से ही तारबाहर फाटक पर ब्रिज बनाने की मांग की जा रही है।इसके लिए कई आंदोलन हो चुके हैं। लेकिन अब तक काम शुरू नहीं हो सका है।लदान के आंकड़े बढ़ाने जम्बो मालगाड़ी जैसे प्रयोग करने वाले रेल्वे ने कभी आम आदमी की सहूलियत के लिए कोई प्रयोग नहीं किया। आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि रेल्वे का जोनल मुख्यालय होने के बावजूद एक अदद ब्रिज के लिए प्रक्रिया क्यों पूरी नहीं हो सकी। आखिर कौन इसे रोक रहा है। कागजी खाना-पूरी में इतनी देरी क्यों। एक ही शहर में प्रस्ताव तैयार करने और उसे मंजूरी दिलाने में आखिर कितना वक्त लगता है।क्या इसी लिए लोगों ने बिलासपुर में रेल्वे जोन बनाने के नाम पर आंदोलन किया था।
         तारबाहर रेल हादसे के बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा......और प्रतिक्रिया स्वरूप धुआं उठा.....। आग की इन लपटों के पीछे दर्द को समझना पड़ेगा। ये लपटें भी हवा में यह सवाल छोड़ गईं है कि रेल्वे प्रशासन आम आदमी के दिल की भाषा समझने की कोशिश क्यों नहीं करता। रेल्वे प्रशासन को याद होगा कि बिलासपुर रेल्वे जोन की मांग पर जब लम्बे समय तक न्याय नहीं मिला तो आखिर पन्द्रह जनवरी 1996 को इस शहर के लोगों ने आत्मदाह की तर्ज पर बहुत कुछ आग के हवाले कर दिया था।शनिवार की रात उठी आग की लपटें भी  कुछ ऐसा ही अहसास करा रहीं थी। इसकी तपिश रेल्वे प्रशासन भी महससूस करे...यह वक्त का तकाजा है।
              हर समय शान्त और भाईचारे के बीच बसर करने वाले बिलासपुर शहर के लोगों की इस तासीर को समझने की जरूरत है....... । तोड़-फोड़ और आगजनी को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता।लेकिन अब तक का तजुर्बा यही है कि इसके बिना आमआदमी की दर्द भरी आवाज कोई सुनता भी तो नहीं है।आग की लपटों का अहसास किए बिना इधर से आँख मूंदकर गुजरने वाले रेल प्रशासन के अफसरों को कुछ देर ठहरकर यह जरूर सोच लेना चाहिए बेगुनाह लोगों की मौत के जिम्मेदार लोगों की फेहरिश्त में उनके भी नाम जुड़ गए हैं।रेल्वे के नक्शे में हमेशा सितारे की तरह चमकने वाले बिलासपुर शहर की शायद यह बदकिस्मती ही है तारबाहर फाटक की बदहाली के जिम्मेदार लोगों के नाम वक्त की दीवार पर दर्ज करने के लिए इस शहर के ही दर्जन भर से अधिक लोगों को स्याही के रूप में अपना खून देना पडा......।शायद अब रेल्वे के जिम्मेदार लोग खून से लिखी इस इबारत को पढ़ने की कोशिश करें....। यही इस हादसे का सबसे बड़ा सबक नजर आता है.......। 

Monday, 8 August 2011

सोती पुलिस,सहमी जनता और बेख़ौफ़ दहशतगर्द !

गुनाह के लाल छीटो से एक बार  फिर संस्कारधानी के लोग थर्रा उठे है ! दास्ताने-जुर्म की इबारत में हर दिन नया अध्याय जोड़ने वाले गुनाहगारो ने रविवार-सोमवार की रात जहां कोतवाली इलाके में रहने वाले तेंदुपत्ता व्यापारी जगदीश केडिया के घर में घुसकर खून की होली खेली वहीँ शाम होते-होते सिविल लाइन इलाके में एक व्यापारी के घर में जनगणना अधिकारी बनकर घुसे लूटेरों ने दहशतगर्दी का नंगा नाच नाचा !  गुनाहगारो के नापाक मंसूबो से आवाम की नीद हराम हो चुकी है वही पुलिस वारदात के बाद अपराधियों की परछाई खोजने में वक्त जाया कर रही है ! शहर में दुसरे प्रान्तों से आये दहशत गर्द बेख़ौफ़ घूम रहे है और क़ानून के रखवाले वाहन चेकिंग,मोबाइल चोरी,सट्टा,जुआ के मामलो को सुलझाकर अपने कर्तव्यो की इतिश्री समझ रही है !
      गुनाह के खुनी पंजो की एक करतूत की खब़र सोमवार की सुबह कोतवाली पुलिस को लगती है ! पुलिस को बताया जाता है की बिहारी टाकिज के पास रहने वाले मशहूर तेंदुपत्ता व्यापारी जगदीश केडिया के घर में कुछ लोगो ने क़त्ल कर डकैती की कोशिश की है ! बड़े व्यापारी के घर में क़त्ल और डकैती की खब़र से खाकी के माथे पर परेशानी की सलवटो के बीच पसीना बहना शुरू हो जाता है ! आनन्-फानन में कोतवाल समेत कई थानों के पुलिस वाले मौका -ए -वारदात पर पहुँच जाते है,इधर एक के बाद एक अधिकारियों की आवाजाही से इलाके के लोग और राहगीर वारदात की गंभीरता से वाकिफ होने लगते है ! मौके पर तफ्तीश में जुटी पुलिस को घर में सबसे पहले एक बिस्तर नजर आता है जो खून के रंग से भीगा हुआ था !  बिस्तर और जमीन पर बिखरे खून से रंगे घर की बिल्ली के पग चिन्ह पुलिस को उस ठिकाने तक पहुंचा देते है जहां कातिलो ने क़त्ल के बाद लाश फेंक दी थी !  कातिलो ने घर के पीछे ही झाड़ियों में उस नौकर की लाश को फेंक दिया था जो केडिया परिवार का ३० बरस पुराना वफादार मुलाजिम था ! लाश दिलहरण ठाकुर की थी जो शहर से करीब २० किलोमीटर दूर सीपत के पास का रहने वाला था,लाश को झाड़ियों के बीच से निकलवाकर पंचनामा करवाई में जुटी पुलिस के आला अधिकारी घर में बिखरे सामान और हर कमरों की तलाशी में जुटे थे ! हर कदम पर सुराग तलाशती पुलिस को इसी दौरान ये पता चला की  घर का दुसरा नौकर जो करीब १५ दिन पहले ही आया है वो गायब है,ये सुचना पुलिस के लिए राहत देने वाली थी ! फरार नौकर कृष्णा यादव की तलाश में पुलिस की एक टीम तत्काल मोपका और उसके संभावित ठिकानों की ओर निकल पड़ी ! इधर व्यवसाई परिवार का ५ अगस्त से शहर के बाहर होना और नए नौकर का सुनियोजित तरीके से क़त्ल कर देना सबको हैरत में डालता रहा ! विवेचना के दौरान पुलिस ने सम्भावना जाहिर की कि कातिल एक नही कई है और नए नौकर के साथ मिलकर लूट कि बड़ी वारदात को अंजाम देना चाहते थे चूँकि दिलहरण ने विरोध किया इस कारण मार दिया गया होगा ! तमाम संभावनाओ पर तफ्तीश करती पुलिस काफी परेशान नजर आई ! पुराना हाईकोर्ट के पास कहे या फिर एक प्रतिष्टित समाचार पत्र के दफ्तर के करीब रिहायशी मकान में क़त्ल हुआ,फिर लाश को घर के पीछे ले जाकर झाड़ियों में छिपा दिया गया और बड़ी ही सफाई से कातिल मौके से फरार  भी हो गए जबकि चंद कदमो की दूरी पर यानी गांधी चौक पर खाकी रात्री गश्त का दावा करती है ! ऐसे में कई सवाल खाकी की रात्री गश्त पर भी खड़े करती है ! पर जवाब मांगने वाला कोई नही है इसी कारण दास्ताने जुर्म की इबारतो में इजाफा हो रहा है ! 
             क़त्ल जैसी संगीन वारदात की तफ्तीश में जुटी पुलिस कृष्णा की तलाश में भटक ही रही थी की शाम होते-होते सिविल लाइन इलाके के मिनोचा कालोनी में एक व्यवसाई के घर तीन युवक जनगणना अधिकारी बनकर पहुँच जाते है,घर में अकेली महिला उनकी बातो में आकर घर का दरवाजा जैसे ही खोलती है वो महिला की आँख में मिर्च पावडर डालकर लूट की कोशिश में जुट जाते है ! आँख में पड़े मिर्च पावडर की वजह से व्यवसाई की पत्नी लक्ष्मी मोटवानी जोर-जोर से चिलाने लगती है जिसकी चिल्लाहट सुनकर पड़ोस के लोग उसके घर की ओर पहुचने लगते है ! लोगो को घर की ओर आता देख तीनो लुटेरे बाउंड्री वाल कूदकर भाग जाते है,इधर खौफ से थर्राती लक्ष्मी जब तक घरवालो को सूचना देकर बुलाती,जब तक मोटवानी परिवार जुर्म की रिपोर्ट लिखवाने सिविल लाइन थाने पहुँचती तब-तक आरोपी पुलिस की गिरफ्त से दूर जा चुके थे हालांकि पुलिस आरोपियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डाल देने का दावा कर रही है ! सवाल ये खड़ा होता है की जिस वक्त मोटवानी परिवार के घर में लूट की नियत से तीन आरोपी घुसे उस वक्त शाम के ४ बज रहे थे,यक़ीनन वारदात का वक्त आरोपियों की बेखौफियत का प्रमाण देती है वही उनको ये जानकारी भी थी कि शाम चार बजे घर में महिला अकेली होती है...खैर ऍसी कई वारदाते है जिन्होंने पुलिस कि कार्यशैली और उनकी सक्रियता के साथ-साथ उनके मजबूत सूचना तंत्र की गवाही दी है ! आज के हालत बयान करते है की अपराधियों के बूटो की धमक से जनता खौफ के साए में जी रही है और गरीब मजलूमों पर क़ानून का पट्टा बरसाने वाले दबंग चैन की नीद सो रहे है ! बढ़ते जरायम को देखकर यक़ीनन कहा जा सकता है  आने वाले समय में रास्तो पर चेहरों पर चेहरा लगाए दहशतगर्द घूमते नजर आयेंगे और आम जनमानस घरो में दुबककर घर की रखवाली करती जान बचाने की कोशिश में जुटी रहेगी ! दास्ताने जुर्म के पन्नो पर अब भी कई अनसुलझे मामले है जिनकी तफ्तीश पुलिस कर रही है !
प्रमुख बड़ी वारदातें
> 16 मई 2010 : मिनोचा कालोनी में जूता व्यवसायी प्रकाश मोटवानी के घर 10 नकाबपोशों ने 111 तोला सोना और 3 लाख नगद सहित 25 लाख की डकैती डाली।
> 14 फरवरी 2010 : छठघाट में पुजारी चंद्रमौली उदासीन उर्फ खड़ेश्वरी बाबा से मारकर दो लाख की लूट।
> 18 मार्च 2010 : दोपहर को जबड़ापारा में बाइक सवार सतानंद से 3 लाख रुपए की लूट

> 14 जुलाई 2010 : गुरु विहार में रिटायर्ड एसईसीएल कर्मी एनएन गायन के मकान में दिनदहाड़े 3 लाख की डकैती।

Thursday, 4 August 2011

खून से सनी पटरियां और अँधेरे का सीना चीरती चीख...

बिलासपुर के तारबाहर फाटक पर मंगलवार रात ऐसा मंजर दिखा कि किसी की भी रूह कांप उठे। रेलवे ट्रैक के किनारे एक महिला खून से लथपथ पड़ी थी। एक हाथ और एक पैर उसके शरीर से अलग पटरियों के बीच थे।शरीर से खून की धार बह रही थी, पर वह अपने नहीं, बेटी के दर्द से तड़प रही थी। दो कदम दूर ट्रैक पर उसकी बेटी का सिर धड़ से अलग और बाकी शरीर चार टुकड़ों में पड़ा था। महिला चीख-चीखकर यही कह रही थी कि बेटी ने उसे बचाने अपनी जान दे दी।तारबाहर रेलवे फाटक मंगलवार रात दिल दहला देने वाली घटना का गवाह बना। बैक हो रही चेन्नई-बिलासपुर एक्सप्रेस ने बंगला यार्ड में रहने वाली मंगमा (65 वर्ष) और उनकी बेटी पी प्रमिला (35 वर्ष) को चपेट में ले लिया। हादसे में प्रमिला की मौके पर ही मौत हो गई। मंगमा की हालत गंभीर बनी हुई है।हालाकि मंग्मा की स्थिति बेहद नाजुक है और डॉक्टर भी कुछ कहने से फिलहाल बच रहे है,इधर दर्द से कराहती  मंगमा ने बताया कि वह अपनी बेटी प्रमिला के साथ प्रकाश नाम के किसी व्यक्ति की बर्थ-डे पार्टी में गोविंदनगर गई थी। रात करीब 11 बजे दोनों लौट रहे थे। दोनों एक साथ तारबाहर फाटक पार कर ही रहे थे, तभी यार्ड की ओर से अचानक ट्रेन आ गई। ट्रेन बैक हो रही थी, इसलिए सामने से लाइट नजर नहीं आई। जब तक वे कुछ समझ पाते, ट्रेन एकदम नजदीक आ गई। उनके पास ट्रैक से हटने का भी वक्त नहीं था। तभी प्रमिला ने उन्हें पूरी ताकत लगाकर ट्रैक से बाहर धकेल दिया। वे गिर भी नहीं पाई थीं कि ट्रेन आ गई। इसके बाद वह कुछ भी नहीं बोल पाई। वह बार-बार यही कह रही थी कि बेटी ने मुझे बचाने अपनी जान दे दी। ट्रेन की चपेट में आने से प्रमिला का सिर धड़ से अलग हो गया। उसका एक हाथ भी कट गया। वहीं मंगमा का एक हाथ और एक पैर भी कट गया। 
                      हादसा इतना भयावह था कि प्रमिला की लाश और मंगमा के शरीर की हालत देखकर फाटक पार करने के लिए खड़े कुछ लोग असहज हो गए। लोगों ने बताया कि एक युवक तो गश खाकर गिर पड़ा। ट्रैक पर हर तरफ खून नजर आ रहा था। प्रमिला और मंगमा के शरीर के हिस्से भी आसपास चीथड़ों में पड़े थे।हादसे की बड़ी वजह फाटक पर पसरा घुप अंधेरा भी है। असल में जब ट्रेन सामने से आती है, तो हेडलाइट की रोशनी से लोगों को इसका पता चल जाता है। हादसे के वक्त चेन्नई-बिलासपुर एक्सप्रेस बैक हो रही थी, इसलिए मां-बेटी को ट्रेन के आने का पता ही नहीं चल पाया। अगर फाटक पर पर्याप्त रोशनी होती, तो शायद वे ट्रेन को आते देख लेते और उनकी जिंदगी बच जाती।

                                       तारबाहर फाटक के पास पहले भी बड़े हादसे हो चुके हैं। हाल ही में 20 जुलाई को सरकंडा निवासी गोलू यादव की यहीं पर ट्रेन से कटकर जान चली गई थी। कुछ महीनों पहले 19 सितंबर को वायरलेस कॉलोनी में रहने वाले रेलवे कर्मी कार्तिक की यार्ड के पास मौत हो गई थी। वह भी ट्रेन की चपेट में आ गए थे। बीते अप्रैल में एक युवक की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी। इससे पहले भी यहां कई ऐसे हादसे हो चुके हैं।आधा शरीर कटा, पर हौसला नहीं खोया: मंगमा के शरीर का एक हिस्सा ट्रेन से कट गया था। उसका एक हाथ और एक पैर पूरी तरह शरीर से अलग हो गया, फिर भी उसने हौसला नहीं खोया। वह बार-बार अपनी बेटी का नाम लेकर विलाप कर रही थी। उसने अपना नाम, पता और बेटे का नाम भी बताया। उसने बताया कि बेटा पुखराज आंध्रा स्कूल में काम करता है। वह हाथ उठाकर आसपास खड़े लोगों से मदद की गुहार कर रही थी।मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि घटना के वक्त तारबाहर फाटक के पार जीआरपी के तीन-चार जवान मौजूद थे। मंगमा ट्रेन से कटकर तड़प रही थी, पर जवान सिर्फ तमाशबीन की तरह कुछ दूर खड़े रहे। फिर वे चले गए। भीड़ में मौजूद एक शख्स ने जीआरपी के अफसरांे को घटना की सूचना दी। करीब आधे घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची, पर उसमें भी घायल वृद्धा को उठाने के लिए स्ट्रेचर नहीं था। एंबुलेंस भी लौट गई। फिर से करीब आधे घंटे बाद एंबुलेंस लौटी और घायल को उठाकर रेलवे अस्पताल पहुंचाया गया।

                                     व्यस्ततम ट्रैफिक होने के बाद भी तारबाहर फाटक पर रोशनी की कमी है। लगभग दो सौ मीटर वाले फाटक के दोनों किनारे पर एक-एक हैलोजन लगाया गया है, जिसकी रोशनी दूसरी, तीसरी लाइन पर सिमट जाती है। मंगलवार की घटना के पीछे एक बड़ा कारण अंधेरा था। यार्ड से बैक हो रही ट्रेन अंधेरे में नजर नहीं आई और प्रमिला की नजर ट्रेन पर पड़ी तब तक देर हो चुकी थी।

Wednesday, 3 August 2011

एक बार फिर दीनदयाल आवास में...

क बार फिर दीनदयाल आवास के दो मकानों से तीन युवतियों व दो युवकों को मोहल्ले के लोगों ने संदिग्ध हालत में मंगलवार की देर रात पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया...सिविल लाइन पुलिस उनसे हमेशा की तरह पूछताछ कर रही है...हालांकि मैंने अपनी पुरानी पोस्ट के जरिये भी इस तरह के जरायम पर पोलिसे की विवेचना पर काफी कुछ कहा है.... दीनदयाल आवास के मकान नंबर एलआईजी 456 व 151 में पिछले कुछ दिनों से संदिग्ध युवक-युवतियों का आना-जाना था...मोहल्ले के लोगों ने एकजुट होकर उन्हें पकड़ने की योजना बनाई, रात को लोगों ने क्वार्टर नंबर 456 से 2 युवतियों व एक युवक और एलआईजी 151 से एक युवती व एक युवक को संदिग्ध हालत में पकड़ा....इस बात से आप अंदाजा लगा सकते है की खाकी कितनी मुस्तेद है...?दीनदयाल कालोनी में कुछ सभ्य लोग गलती से मकान बनवा चुके है इस कारण अपनी सुरक्षा के साथ साथ आस-पास के वातावरण को भी साफ़-सुथरा बनाए रखने का जिम्मा अपने कंधो पर उठाये हुए है...लोगो ने जब देह व्यापार से जुडी महिलाओ और तीन लडको को पोलिसे को दिया तो खाकी अपराध कायमी में व्यस्त हो गई...इधर  पुलिस की पूछताछ में एक युवक ने अपना नाम सुनील कुमार और दूसरे ने रमेश कुमार बताया... युवतियों के नामों का खुलासा नहीं किया गया है....पकड़ी गई  युवतियां चकरभाठा क्षेत्र की हैं...
                                                     सबसे बड़ी बात ये की जिन मकानों से लोगो ने देहव्यापार करने वाली महिलाओ को पकड़ा उसे युवतियां ने लम्बे समय से किराए पर ले रखा था....नई सुबह के साथ नए ग्राहकों का इन्तजार करती लडकिया वेश-भूषा से कॉल गर्ल नही लगती,मगर आज देहव्यापार में उन्ही की आमदरफ्त ज्यादा है जिनकी कल्पना जल्दी नही की जा सकती...शहर के गीतांजलि अपार्टमेन्ट जैसे कई रिहायशी इलाको में बड़ी-बड़ी नामचीन काल गर्ल्स बड़े पैमाने पर रेकेट चला रही है मग़र पुलिस तब ही कोई कारवाही में हाथ डालती है जब उसे लगता है की बदनाम वर्दी पर एक और दाग लग जायेगा...खैर शहर के आउटर में दीनदयाल कालोनी शहर की सबसे असुरक्षित कालोनी है... यहां आए दिन आपराधिक घटनाएं होती रहती हैं... पुलिस ने यहां किराए से मकान लेकर रह रहे कई बड़े मामलों के आरोपियों को गिरफ्तार किया है.... कुछ महीनों से यहां देह व्यापार भी शुरू हो गया है, इससे मोहल्ले के लोग त्रस्त हैं....देखते है लोगो की सक्रियता से पकड़ी गई काल गर्ल्स के मामले में पुलिस कारवाही के नाम पर और कितने रैकेट चलाने वालो को सलाखों के पीछे डालती है...?

Monday, 18 July 2011

...और कितने गेंगरेप

वो महज १४ साल की है...उसका गुनाह केवल इतना है की उसने कम उम्र में इश्क कर लिया...वो आज़ाद पंछी की तरह प्रेमी की बांहों में बान्हे डालकर घूमना चाहती थी...उसे लगा जैसे ख्वाब पूरे होने लगे है तभी अचानक कुछ भेड़िये रास्ता रोक लेते है और प्रेमी के सामने ही उस मासूम के अरमानो को रौदने का सिलसिला शुरू हो जाता है...बारी बारी से तीन दरिन्दे उस मासूम की अस्मत को तार-तार करते है पास ही रस्सियों से बंधा प्रेमी कुछ नही कर पाता है...मासूम लड़की की इज्जत लूटने वाले भेड़िये मौके से भाग जाते है,कुछ बच जाता है तो बस जिन्दगी भर तिल-तिल कर मारने वाला दर्द और एक ऐसी ख़ामोशी जिसे चाहकर भी किसी को नही बताया जा सकेगा...सामूहिक बलात्कार की रिपोर्ट लिखकर पुलिस जांच जारी होने की बात कह रही है और सियासी लोग एक दूसरे पर बयानों की तलवार चला रहे है...इस सूबे का मुखिया मासूम के साथ हुए गेंगरेप की घटना की निंदा करता है तो विपक्ष यानी कांग्रेसी कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहे है...
              इतनी लाइनों को पढ़कर हो सकता है आप सोचे किसी फिल्म या नाटक की स्क्रिप्ट है जिसमे ड्रामा,क्लाइमेक्स,सस्पेंस और भरा-पूरा मनोरंजन है लेकिन ये लाइने जिन्दगी की हकीकत से वास्ता रखती है...ये लाइन उस गुनाह से पर्दा उठाती है जिसमे सत्ताधारी सुरमा भय मुक्त शासन,प्रशासन देने का वायदा करते है...जी हाँ,जिस राजधानी की सडको पर ना रौशनी की कमी है ना लोगो के चहलकदमी की वहां से महज २० किलोमीटर दूर उपरवारा गाँव में १६ जुलाई की शाम १४ साल की पायल{बदला हुआ नाम}तीन बदमाश उसी के प्रेमी की आँखों के सामने बारी-बारी से बलात्कार करके भाग जाते है और क़ानून के रखवाले रिपोर्ट लिखवा दिए जाने के ३६ घंटे बाद तक किसी ठोस नतीजे पर नही पहुँच पाती है...जाहिर है पुलिस का सूचना तंत्र कितना मजबूत है अंदाजा लगाया जा सकता है...!
                  पिछले कुछ बरस में सामूहिक बलात्कार की कई घटनाओं ने पहले ही कानून व्यव्स्था पर सवाल खड़े कर रखे है...करीब करीब तीन साल पहले नंदनवन के पास अटारी गाँव में कुछ लोगो ने एक महिला के पति को बंधक बनाकर उसका बलात्कार किया...इसी तरह १४ फरवरी २०११ यानी साल की शुरुवात में धरसींवा कुरा के पास इंजीयरिंग कालेज के छात्रो ने गाँव की एक लड़की से सामूहिक दुष्कर्म किया...
     मै बिलासपुर [बिल्हा] के पौंसरी गाँव में रहने वाली उस युवती की चीख-पुकार भी नही भूला हूँ जिसने अपने साथ हुए जुल्म की दास्ताँ को किस तरह से पुलिस के सामने बया किया था...पिछले साल जुलाई महीने की ही तो घटना है...मुझे तारीख ठीक से याद नही है पर महिना याद है,अपने परिजनों के साथ महाराष्ट्र से वापस बिल्हा लौटी सुमन[बदला हुआ नाम]को अँधेरे का फायदा उठाकर ६ लोगो ने बलात्कार किया था...उस मामले में पुलिस ने ५ आरोपी पकड लिए थे लेकिन स्कूली छात्र के साथ गेंग रेप करने वाले ३ बदमाश अब भी क़ानून को चिढाते खुली हवा में साँसे ले रहे है...गुनाह की ना ख़त्म होने वाली सड़क पर दौड़ लगाते गुनहगार बेशक नही समझ पा रहे है की सलाखे उनके इन्तजार में ना कमजोर होने वाली है ना क़ानून में उनके गुनाहों की सजा माफ़ी है....हाँ ये जरुर है खाकी ओढ़े दबंग उस पीड़ित को न्याय दिलाने के लिहाज से डायरी बनाते है या फिर बलात्कारी से मोटी रकम लेकर मामले को रफा-दफा कर देते है...? ऐसे कई सवाल है जो बार बार यही कहते है कि...गुनाह बाकी है...!