Monday, 24 October 2011

मौत का जिम्मेदार कौन...?




   शनिवार की  शाम बिलासपुर में तारबाहर रेल्वे फाटक पर हुए हादसे ने कई परिवार उजाड़ दिए..... इस हादसे ने एक दर्जन से अधिक परिवारों पर ऐसा कहर बरपाया कि अब वे इससे कभी उबर नहीं पाएंगे। उधर हिन्दुस्तान रेल्वे के नक्शे में अपनी खास पहचान रखने वाले बिलासपुर शहर में रेल लाइन पर बिखरे बेगुनाह लोगों के खून से लथपथ तारबाहर फाटक आज चीख-चीख कर यह सवाल उठा रहा है कि आखिर इतने लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है....।
       जोनल रेल्वे मुख्यालय के स्टेशन के नजदीक बने तारबाहर फाटक से रोजाना पता नहीं कितने लोग गुजरते हैं। वजह यही है कि जाल की तरह फैली रेल लाइनों के उस पार सिरगिट्टी और आस-पास के कई गावों मे बड़ी आबादी है। जिनका गुजर-बसर बिलासपुरर से होता है। लिहाजा लोगों का आना-जाना लगा रहता है। जान जोखिम में डालकर भी लोग रेल लाइनों के इस जाल को पार करने बजबूर हैं। ऐसी ही मजबूरी ने शनिवार की शाम कई लोगों की जान ले ली।जिसने भी यह मंजर देखा वह कांप उठा।
        लेकिन अब सवाल यह है कि बेननुगाह लोगों की मौत का गुनाहगार कौन है। व्यवस्था के जिम्मेदार लोग इसके जवाब में दलील दे सकते हैं कि रेल्वे फाटक  बंद होने के बावजूद उसे पार करने की कोशिश करने वाले खुद इसके जिम्मेदार हैं। लेकिन क्या यह बात किसी के गले उतर सकती है। बल्कि व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों से यह पूछा जाना चाहिए कि रेल्वे को लदान और आमदनी के रिकार्ड तोड़ने के लिए हर समय सिर्फ इस बात की फिकर क्यों रहती है कि रेल की पटरियों का अधिकतम इस्तेमाल कैसे किया जाए।इस वजह से ही ट्रेक पर से हर समय गाड़िया गुजरती हैं। इस फेर में रेल्वे ने कभी यह नहीं सोचा कि आम लोग इस फाटक से कैसे गुजरते होंगे।
       बरसों पहले से ही तारबाहर फाटक पर ब्रिज बनाने की मांग की जा रही है।इसके लिए कई आंदोलन हो चुके हैं। लेकिन अब तक काम शुरू नहीं हो सका है।लदान के आंकड़े बढ़ाने जम्बो मालगाड़ी जैसे प्रयोग करने वाले रेल्वे ने कभी आम आदमी की सहूलियत के लिए कोई प्रयोग नहीं किया। आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि रेल्वे का जोनल मुख्यालय होने के बावजूद एक अदद ब्रिज के लिए प्रक्रिया क्यों पूरी नहीं हो सकी। आखिर कौन इसे रोक रहा है। कागजी खाना-पूरी में इतनी देरी क्यों। एक ही शहर में प्रस्ताव तैयार करने और उसे मंजूरी दिलाने में आखिर कितना वक्त लगता है।क्या इसी लिए लोगों ने बिलासपुर में रेल्वे जोन बनाने के नाम पर आंदोलन किया था।
         तारबाहर रेल हादसे के बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा......और प्रतिक्रिया स्वरूप धुआं उठा.....। आग की इन लपटों के पीछे दर्द को समझना पड़ेगा। ये लपटें भी हवा में यह सवाल छोड़ गईं है कि रेल्वे प्रशासन आम आदमी के दिल की भाषा समझने की कोशिश क्यों नहीं करता। रेल्वे प्रशासन को याद होगा कि बिलासपुर रेल्वे जोन की मांग पर जब लम्बे समय तक न्याय नहीं मिला तो आखिर पन्द्रह जनवरी 1996 को इस शहर के लोगों ने आत्मदाह की तर्ज पर बहुत कुछ आग के हवाले कर दिया था।शनिवार की रात उठी आग की लपटें भी  कुछ ऐसा ही अहसास करा रहीं थी। इसकी तपिश रेल्वे प्रशासन भी महससूस करे...यह वक्त का तकाजा है।
              हर समय शान्त और भाईचारे के बीच बसर करने वाले बिलासपुर शहर के लोगों की इस तासीर को समझने की जरूरत है....... । तोड़-फोड़ और आगजनी को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता।लेकिन अब तक का तजुर्बा यही है कि इसके बिना आमआदमी की दर्द भरी आवाज कोई सुनता भी तो नहीं है।आग की लपटों का अहसास किए बिना इधर से आँख मूंदकर गुजरने वाले रेल प्रशासन के अफसरों को कुछ देर ठहरकर यह जरूर सोच लेना चाहिए बेगुनाह लोगों की मौत के जिम्मेदार लोगों की फेहरिश्त में उनके भी नाम जुड़ गए हैं।रेल्वे के नक्शे में हमेशा सितारे की तरह चमकने वाले बिलासपुर शहर की शायद यह बदकिस्मती ही है तारबाहर फाटक की बदहाली के जिम्मेदार लोगों के नाम वक्त की दीवार पर दर्ज करने के लिए इस शहर के ही दर्जन भर से अधिक लोगों को स्याही के रूप में अपना खून देना पडा......।शायद अब रेल्वे के जिम्मेदार लोग खून से लिखी इस इबारत को पढ़ने की कोशिश करें....। यही इस हादसे का सबसे बड़ा सबक नजर आता है.......। 

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