Thursday 4 August 2011

खून से सनी पटरियां और अँधेरे का सीना चीरती चीख...

बिलासपुर के तारबाहर फाटक पर मंगलवार रात ऐसा मंजर दिखा कि किसी की भी रूह कांप उठे। रेलवे ट्रैक के किनारे एक महिला खून से लथपथ पड़ी थी। एक हाथ और एक पैर उसके शरीर से अलग पटरियों के बीच थे।शरीर से खून की धार बह रही थी, पर वह अपने नहीं, बेटी के दर्द से तड़प रही थी। दो कदम दूर ट्रैक पर उसकी बेटी का सिर धड़ से अलग और बाकी शरीर चार टुकड़ों में पड़ा था। महिला चीख-चीखकर यही कह रही थी कि बेटी ने उसे बचाने अपनी जान दे दी।तारबाहर रेलवे फाटक मंगलवार रात दिल दहला देने वाली घटना का गवाह बना। बैक हो रही चेन्नई-बिलासपुर एक्सप्रेस ने बंगला यार्ड में रहने वाली मंगमा (65 वर्ष) और उनकी बेटी पी प्रमिला (35 वर्ष) को चपेट में ले लिया। हादसे में प्रमिला की मौके पर ही मौत हो गई। मंगमा की हालत गंभीर बनी हुई है।हालाकि मंग्मा की स्थिति बेहद नाजुक है और डॉक्टर भी कुछ कहने से फिलहाल बच रहे है,इधर दर्द से कराहती  मंगमा ने बताया कि वह अपनी बेटी प्रमिला के साथ प्रकाश नाम के किसी व्यक्ति की बर्थ-डे पार्टी में गोविंदनगर गई थी। रात करीब 11 बजे दोनों लौट रहे थे। दोनों एक साथ तारबाहर फाटक पार कर ही रहे थे, तभी यार्ड की ओर से अचानक ट्रेन आ गई। ट्रेन बैक हो रही थी, इसलिए सामने से लाइट नजर नहीं आई। जब तक वे कुछ समझ पाते, ट्रेन एकदम नजदीक आ गई। उनके पास ट्रैक से हटने का भी वक्त नहीं था। तभी प्रमिला ने उन्हें पूरी ताकत लगाकर ट्रैक से बाहर धकेल दिया। वे गिर भी नहीं पाई थीं कि ट्रेन आ गई। इसके बाद वह कुछ भी नहीं बोल पाई। वह बार-बार यही कह रही थी कि बेटी ने मुझे बचाने अपनी जान दे दी। ट्रेन की चपेट में आने से प्रमिला का सिर धड़ से अलग हो गया। उसका एक हाथ भी कट गया। वहीं मंगमा का एक हाथ और एक पैर भी कट गया। 
                      हादसा इतना भयावह था कि प्रमिला की लाश और मंगमा के शरीर की हालत देखकर फाटक पार करने के लिए खड़े कुछ लोग असहज हो गए। लोगों ने बताया कि एक युवक तो गश खाकर गिर पड़ा। ट्रैक पर हर तरफ खून नजर आ रहा था। प्रमिला और मंगमा के शरीर के हिस्से भी आसपास चीथड़ों में पड़े थे।हादसे की बड़ी वजह फाटक पर पसरा घुप अंधेरा भी है। असल में जब ट्रेन सामने से आती है, तो हेडलाइट की रोशनी से लोगों को इसका पता चल जाता है। हादसे के वक्त चेन्नई-बिलासपुर एक्सप्रेस बैक हो रही थी, इसलिए मां-बेटी को ट्रेन के आने का पता ही नहीं चल पाया। अगर फाटक पर पर्याप्त रोशनी होती, तो शायद वे ट्रेन को आते देख लेते और उनकी जिंदगी बच जाती।

                                       तारबाहर फाटक के पास पहले भी बड़े हादसे हो चुके हैं। हाल ही में 20 जुलाई को सरकंडा निवासी गोलू यादव की यहीं पर ट्रेन से कटकर जान चली गई थी। कुछ महीनों पहले 19 सितंबर को वायरलेस कॉलोनी में रहने वाले रेलवे कर्मी कार्तिक की यार्ड के पास मौत हो गई थी। वह भी ट्रेन की चपेट में आ गए थे। बीते अप्रैल में एक युवक की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी। इससे पहले भी यहां कई ऐसे हादसे हो चुके हैं।आधा शरीर कटा, पर हौसला नहीं खोया: मंगमा के शरीर का एक हिस्सा ट्रेन से कट गया था। उसका एक हाथ और एक पैर पूरी तरह शरीर से अलग हो गया, फिर भी उसने हौसला नहीं खोया। वह बार-बार अपनी बेटी का नाम लेकर विलाप कर रही थी। उसने अपना नाम, पता और बेटे का नाम भी बताया। उसने बताया कि बेटा पुखराज आंध्रा स्कूल में काम करता है। वह हाथ उठाकर आसपास खड़े लोगों से मदद की गुहार कर रही थी।मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि घटना के वक्त तारबाहर फाटक के पार जीआरपी के तीन-चार जवान मौजूद थे। मंगमा ट्रेन से कटकर तड़प रही थी, पर जवान सिर्फ तमाशबीन की तरह कुछ दूर खड़े रहे। फिर वे चले गए। भीड़ में मौजूद एक शख्स ने जीआरपी के अफसरांे को घटना की सूचना दी। करीब आधे घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची, पर उसमें भी घायल वृद्धा को उठाने के लिए स्ट्रेचर नहीं था। एंबुलेंस भी लौट गई। फिर से करीब आधे घंटे बाद एंबुलेंस लौटी और घायल को उठाकर रेलवे अस्पताल पहुंचाया गया।

                                     व्यस्ततम ट्रैफिक होने के बाद भी तारबाहर फाटक पर रोशनी की कमी है। लगभग दो सौ मीटर वाले फाटक के दोनों किनारे पर एक-एक हैलोजन लगाया गया है, जिसकी रोशनी दूसरी, तीसरी लाइन पर सिमट जाती है। मंगलवार की घटना के पीछे एक बड़ा कारण अंधेरा था। यार्ड से बैक हो रही ट्रेन अंधेरे में नजर नहीं आई और प्रमिला की नजर ट्रेन पर पड़ी तब तक देर हो चुकी थी।

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