Thursday, 14 July 2011

ना कातिल मिले,न नौकरी...

आज सुशील का जन्म दिन है,पिछले जन्म दिन पर वो हमारे बीच था,अब नही है...बिलासपुर की फिजा में दहशत और गोली बारूद की गंध फैलाने वालो ने सुशील का सीना २० दिसंबर २०१० की रात छलनी कर दिया था...अज्ञात हत्यारों ने एक के बाद एक कई गोलिया सुशील पर दाग दी...बिलासपुर ही नही प्रदेश के इतिहास में लोकतंत्र पर इतनी आजादी से हमला करने का ये पहला मामला था...सुशील की हत्या किसने की...?हत्या के पीछे क्या वजह है...?वो कौन लोग है जिन्होंने लोकतंत्र के एक मजबूत खम्भे को बीच सड़क पर धराशाई कर दिया...?इसे कई सवाल है जिनको खोजने की कोशिशे पिछले सात महीने से चल रही है...पत्रकार की हत्या हुई तो सरकार ने भी काफी हमदर्दी दिखने की कोशिशे की...बिलासपुर की पुलिस के अलावा राजधानी से एक अलग पुलिस टीम यहाँ आई और काफी दिनों तक कातिल और क़त्ल में प्रयुक्त हथियार तलाशने की कवायद करती रही....इस बीच पुलिस ने बादल खान नाम के एक व्यक्ति को क़त्ल का आरोपी भी बनाया जिससे ये कबूल करवा लिया गया की सुशील को उसी ने गोली मारी है...मगर खाकी की इस कहानी को अखबारनवीश समझ चुके थे,क्योंकि पुलिस के पास वो रिवाल्वर नही थी जिससे हत्या की गई...पुलिस सुशील का मोबाईल भी नही खोज सकी,लिहाजा क़त्ल के आरोप में खाकी की बनाई कहानी कोर्ट में कमजोर पड़ गई और बादल खान जमानत पर छूट गया...
                    सुशील हत्याकांड में पुलिस की भूमिका शुरू से संदेह के दायरे में रही...पुलिस ने क़त्ल वाली जगह को सील करने की बजाय खून के छीटो को पानी से धुलवा दिया...आनन्-फानन में लाश मौके से उठवाकर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी गई...इस पूरे घटनाक्रम में तफ्तीश की शुरुवात में फोरेंसिक एक्सपर्ट को नही बुलाया गया...कातिलो के गुनाह के सारे निशान एक-एक कर खुद पुलिस ने लापरवाही में मिटा दिए..इधर क़त्ल के बाद गुजरते वक्त से जितनी दूर कातिल होते जा रहे थे उतना ही गुस्सा प्रेस जगत और आवाम में उबाल मारता जा रहा था...लिहाजा कई मांगो,धरना प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री ने सुशील हत्याकांड की जांच के लिए सी.बी.आई.को पत्र लिखा जिसे दो महीने के इन्तजार के बाद सी.बी.आई.ने ठुकरा दिया...इधर सुशील की बेवा को नौकरी देने की मांग भी मानकर जिले के अफसरों को मुख्यमंत्री ने खुद दिशा-निर्देश दिए मगर आज बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है की ना कातिलो का कोई सुराग मिला न सुशील की बेवा को नौकरी मिली...
                      जिन लोगो का खून सुशील के क़त्ल के बाद उबाल मार रहा था वो अब ठंडा पड़ चूका है...इधर सी.बी.आई. ने मामला नही लेने का पत्र राज्य सरकार को भेज ही दिया है लिहाजा वो ही पुलिस फिर जांच की खाना पूर्ति करेगी जिन्होंने क़त्ल के सुराग अपने ही हाथो मिटा दिए....पिछले दिनों मुंबई के सीनियर पत्रकार जे.डे.की हत्या का मामला जब सामने आया तो मुंबई पुलिस ने उसे चुनौती मानते हुए जांच शुरू की और कुछ ही दिनों में अलग-अलग राज्यों से गुनाहगार पकड़ कर ले आई,मगर छत्तीसगढ़ खासकर बिलासपुर पुलिस से वैसी उम्मीद करना यक़ीनन बईमानी होगी...बात सिर्फ इतने पर ही नही ख़त्म होने वाली क्योंकि ....गुनाह बाकी है....! 

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